एक बँधी हुई लीक और सामन्ती मर्यादा के गोल-गोल दायरे… इन्हीं पर चलते हैं लोग चलने की सीख देते हैं लोग!
किन्तु… बँधी हुई लीक को तोड़ना- सामन्ती मान-मर्यादाओं के दायरे से बाहर आना और एक इन्सान के नजरिए से सोचना…
मेरा कहना है- पुलिस की वर्दी में होते हुए भी इन्सान बने रहना… इतना मुश्किल तो नहीं ?।
(अशोक कुमार) |
बढ़िया!!
जवाब देंहटाएंयह अत्यंत हर्ष का विषय है कि आप हिंदी में सार्थक लेखन कर रहे हैं।
हिन्दी के प्रसार एवं प्रचार में आपका योगदान सराहनीय है.
मेरी शुभकामनाएँ आपके साथ हैं.
निवेदन है कि नए लोगों को जोड़ें एवं पुरानों को प्रोत्साहित करें - यही हिंदी की सच्ची सेवा है।
एक नया हिंदी चिट्ठा किसी नए व्यक्ति से भी शुरू करवाएँ और हिंदी चिट्ठों की संख्या बढ़ाने और विविधता प्रदान करने में योगदान करें।
आपका साधुवाद!!
शुभकामनाएँ!
समीर लाल
उड़न तश्तरी
बिलकुल मुश्किल नहीं है जी ......!! बस >>>?
जवाब देंहटाएंइन्सान बने रहना … इतना मुश्किल तो नहीं?!
जवाब देंहटाएंयही तो मुश्किल है।
ख़ुदा तो मिलता है, इंसान ही नहीं मिलता,
ये चीज़ वो है, जो देखी कहीं कहीं मैंने। -- डा. इकबाल
बहुत-बहुत धन्यवाद
आपको नव वर्ष की हार्दिक शुभकामनाएं।