जेलर जेल में
भौतिकता, अवसरवादिता, मूल्यहीनता
सबके बोझ तले मरती हुई मानवता-
कोई नई बात नहीं है।
युगों-युगों से होता आया है यह तो...!
आज के युग की विकट समस्या
यही है कि...
जीवन की इस अंधी दौड़ में
यही सब तो जीवन मूल्य बन गये हैं!
और...
जो इस दौड़ में शामिल नहीं हो पाते
मूर्ख और पागल कहलाते हैं!
('मेरी डायरी' से - फरवरी, 1988)
हमारी जेलें अपराधियों को सुधारने के लिये बनी हैं। ये आपराधिक न्याय-प्रणाली का एक महत्वपूर्ण अंग है और माना जाता है कि अपराध रोकने में उनकी मुख्य भूमिका है। परन्तु हाल के कुछ वर्षो में देखने में आया है कि कुछ जेलें बड़े अपराधियों के लिये सुरक्षित ऐशगाह बन गई हैं। बड़े अपराधियों को ऐसी जेलों के अन्दर सब तरह की सुविधाएँ उपलब्ध हो जाती हैं। कई जगहों पर अपराधी जेल के अन्दर से ही अपराधिक गैंगों का संचालन भी करते हैं । आपराधिक गतिविधियाँ करते वक्त उन्हें पुलिस मुठभेड़ व प्रतिद्वद्वियों से खतरा भी नहीं रहता । आज-कल तो कुछ अपराधी जेल में ही रहते हुए चुनाव भी लड़ते हैं।
जेल में जाने वाले सभी लोग खूँखार अपराधी नहीं होते। कई बार कानून का पालन करने वाले सीधे-सादे नागरिक भी पारिवारिक झगड़े या सम्पत्ति के विवाद या सड़क दुर्घटना आदि कारणों से जेल में पहुँच जाते हैं। ये लोग जेल के अन्दर रह रहे संगठित अपराधिक माफियाओं का शिकार बन जाते हैं। खूँखार अपराधी इनको जेल के अन्दर ही पीटने की धमकी देकर इनके परिवारों से काफी मोटी रकम भी ऐंठ लेते हैं। ये सब सौदेबाजी जेल के अन्दर ही हो जाती है उसे अंजाम बदमाशों के बाहर बैठे गुर्गे दे देते हैं। और इस तरह से जेल में बैठे शातिर बदमाश वसूली भी कर लेते हैं और उनके ऊपर कोई इल्ज़ाम भी नहीं आता क्योंकि उनका जेल में बन्द होना कानूनी रूप से उनकी सहायता करता है। कभी-कभी तो जेल का स्टाफ भी इन खूँखार अपराधियों से डरकर चुप्पी साध लेता है। कहीं-कहीं पर इन अपराधियों से जेल के स्टाफ की मिलीभगत भी प्रकाश में आयी है।
एक दिन जब मैं एक जनपद में वरिष्ठ पुलिस अधीक्षक के पद पर नियुक्त था तो एक बूढ़ा आदमी मेरे कार्यालय में आया। उसकी कमर झुकी हुई थी और वह एक लाठी का सहारा लेकर चल पा रहा था। वह गांव का एक छोटा-सा दुकानदार था, जो मटमैला कुर्ता और कई जगह से फटी धोती पहने हुए था। इस व्यक्ति ने बिना किसी डर के जिस दृढ़ता के साथ अपनी बात बतायी, वह सचमुच काबिले तारीफ थी ।
उसने बताया कि उसके गांव के पास का ही एक अपराधी जिला जेल में बन्द था और वह उसको लगातार धमकी भरी चिट्ठियाँ भेज रहा था। इन चिट्ठियों में बदमाश ने उससे एक लाख रूपये की माँग की थी और रुपया न देने पर उस वृध्द व्यक्ति को या उसके पोते को मारने की धमकी भी दी थी।
सबसे पहले तो मुझे इस बात पर हैरानी हुई कि एक इतने गरीब-से दिखने वाले व्यक्ति से भी कोई फिरौती माँग सकता है। जब मैने उससे इस बारे में सवाल पूछे तो मेरी समझ में आ गया कि मेरी हैरानी गलत थी । क्योंकि वसूली हर स्तर पर हो सकती है और जब आदमी को जान के लाले पड़े हों तो गरीब-से-गरीब आदमी भी अपना घर, दुकान जमीन अथवा गहने बेचकर, अपराधियों के कहर से बचने के लिये एक या दो लाख रुपये जुटा ही सकता है ।
दुख की बात तो यह थी कि यह वसूली का धंधा अपराधियों को सुधारने के लिये बनी जेल से ही चलाया जा रहा था। मैं यह भी सोच रहा था कि पैसा कहॉँ और किसको दिया जाएगा। मैंने बूढ़े बाबा से पूछा तो उसने बताया कि पैसे को जेल में ही दिया जाना है। यह सुन कर मैं तो दंग ही रह गया। बड़े और ख्रूँखार अपराधी जेलों में रहकर आपराधिक गतिविधियों का संचालन करते हैं, यह तो मैने सुना था, किन्तु जेल के अन्दर ही पैसा भी इकट्ठा किया जा रहा है, ऐसी शर्मनाक और आश्चर्यजनक बात मैंने पहली बार सुनी थी।
हमारे जेलों में व्यवस्था इस हद तक बिगड़ चुकी है, यह सुनकर मैने इस गन्दगी को जड़ से मिटाने का संकल्प लिया।
मैंने कुछ तय करने के बाद उस बृध्द व्यक्ति से कहा, ''बाबा, हम इन अपराधियों को पकड़ने के लिए जाल बिछा सकते हैं परन्तु इसमें आपकी जान को बहुत खतरा होगा। आपको साहस और हिम्मत का परिचय देना होगा। आपकी मदद के बिना हम ये सब नहीं कर पाएंगे।''
बृद्ध कुछ देर तक सोचता रहा और साहस बटोर कर बोला कि 'मैं आपका पूरा साथ दूंगा। क्षेत्र वासियों को इन बदमाशों की बदमाशी से छुटकारा दिलाने के लिये मुझे किसी भी हद तक जाना पड़े, मैं पीछे नहीं हटूंगा ।' तब मैने उसे अपनी पूरी योजना समझायी, जिससे वह बदमाशों से सम्पर्क कर योजना के अनुसार जेल में पैसा पहुँचाने का दिन व समय आदि निर्धारित कर सके।
निर्धारित तिथि पर बृध्द समय से दो घंटा पहले ही आ गया और अपने साथ नोटों की गड्डी भी लेता आया। इस बार उसके चेहरे पर आत्मविश्वास साफ झलक रहा था और उसकी चाल में भी दृढ़ता थी। वह पिछली बार की तरह झुका हुआ या टूटा हुआ भी नहीं लग रहा था। मैने चुटकी लेते हुए कहा, ''बाबा, आज तो आप जवान लग रहे हो!''
बृध्द ने अत्यन्त भावुक होकर कहा, ''साहब, आपने ध्यानपूर्वक मेरी पूरी बात सुनी और उसकी गम्भीरता को समझ कर मेरी सहायता करने के लिये योजना बनाई, यह मेरे लिए बहुत बड़ी बात है। आपकी बातों से तो मुझे मानो ज़िंदगी का एक नया मकसद ही मिल गया... इस बूढ़े आदमी की जिंदगी यदि इलाके के लोगों को इस तरह के बदमाशों से छुटकारा दिला सकने में काम आ जाय तो मैं अपना जीवन धन्य समझूंगा।''
मुझे भी ऐसा लगा कि यह बृध्द सिर्फ अपने ही लिये नहीं, बल्कि पूरे समाज के लिये मददगार साबित हो सकता है। ऐसे बदमाश को पकड़वा कर समाज को इस गन्दगी से छुटकारा दिला सकता था। इस दुबले-पतले और कमजोर व्यक्ति द्वारा दिखाये गए साहस को देखकर मन ही मन मैं उसके प्रति कृतज्ञता अनुभव करने लगा। जो आदमी कल तक इतना डरा व भयभीत दिख रहा था, वही आज इतना निडर होकर सीना ठोक कर खड़ा था और कह रहा था कि समाज को ऐसी बुराइयों से छुटकारा दिलाने के लिये उसे अपनी जान भी गँवानी पड़े तो उसे कोई परवाह नहीं होगी।
हमने अपराधियों से मिलने के बहाने उस बृध्द के साथ जाने वाली पुलिस पार्टी को सादे कपड़ों में तैयार किया। नोटों की गड्डी पर निशान लगाये और फिर इस पार्टी को उस आदमी के साथ जेल भेज दिया। सामान्यत: जेल में प्रवेश करने के नियम काफी कड़े होते हैं। पहले तो मिलने की अनुमति लेनी पड़ती है, अनुमति मिलने के बाद आदमी को पूरा विवरण विस्तार से जेल के रजिस्टर में अंकित करना पड़ता है, कितने बजे प्रवेश किया, कितने बजे बाहर निकले, किससे मिलना है आदि-आदि।
पुलिस पार्टी को यह सब विवरण अंकित करना पड़ा, किन्तु उनके साथ ही गये बृध्द को, जो नोटों की गड्डी लेकर गया था, किसी भी तरह की औपचारिकता पूरी नहीं करनी पड़ी। उसको जेल का स्टाफ रजिस्टर में लिखा-पढ़ी किये बिना ही सम्बन्धित अपराधी से मिलाने के लिये ले गया। इससे साफ जाहिर था कि जेल के स्टाफ को इस वसूली के धंधे की जानकारी पहले से थी और उनकी भी इसमें मिली-भगत थी ।
अपराधी ने उससे नोटों की गड्डी ले ली और उसको आश्वस्त किया कि उसे और उसके पोते को डरने की कोई जरूरत नहीं है। वह खुद तो उनको कुछ कहेगा ही नहीं, बाकी अपराधियों को भी कुछ नहीं करने देगा। फिर उसने नोटों की गड्डी जेल के ही किसी स्टाफ को दे दी, जो सम्भवत: इसके बाद बँटवारे की व्यवस्था करने वाला था ।
इस समय तक पुलिस पार्टी ने अपनी सही पहचान नहीं बताई थी। उन्होंने मुझे फोन पर पूरा घटनाक्रम बताया तथा अगले निर्देश माँगे। मैंने उनसे कहा कि वे अपनी पहचान को सार्वजनिक कर दें और सभी सम्बन्धित लोगों से पूछतांछ करें कि कैसे बिना प्रविष्टि के इस बृध्द को जेल के अन्दर आने की अनुमति दी गई ? पैसा जेल के अन्दर क्यों पहुँचने दिया गया ? कैसे पैसा लिया गया और अब जेल के कर्मचारी के पास ही रखा है ? जेल मैनुअल के प्रावधानों का पालन क्यों नहीं किया गया ?
पुलिस पार्टी ने उपरोक्त सवालों पर जेल स्टाफ से गम्भीरता से पूछताछ की। उनकी पूछताछ से पूरी तरह स्पष्ट हो गया कि इस पूरे अपराध में जेल का स्टाफ भी सम्मिलित था, क्योंकि उनकी सहमति के बिना ऐसा सम्भव ही नहीं था ।
अभी तक तो मैं पुलिस अधिकारी होने के नाते पुलिस कर्मियों के खिलाफ जो शिकायतें मुझे मिलती रहती थी, जिनमें सत्यता पाये जाने पर उनके विरूद्व कार्यवाही करता था, किन्तु जेल के स्टाफ द्वारा अपने छोटे-छोटे निजी स्वार्थो की पूर्ति हेतु समाज को कितनी बड़ी क्षति पहँचाई जा रही थी, यह मैने पहली बार देखा था। कुछ सरकारी अधिकारियों और कर्मचारियों के इस तरह के भ्रष्ट आचरण व क्रिया-कलापों से लोगों का पूरी न्याय व्यवस्था या प्रशासन से विश्वास ही उठ जाता है ।
मैने कठोर निर्णय लेते हुए मौके पर इस अपराध में शामिल जेल के सभी कर्मचारियों एवं जेलर को भी अवैध वसूली की धाराओं में गिरफ्तार करने के निर्देश दिए। यह शायद जेल के इतिहास में पहली बार हुआ होगा कि जेल का एक जेलर स्वयं ही अभियुक्त के रूप में उसी जेल में बन्द हुआ हो। जेल की स्टाफ-यूनियन ने प्रदेशव्यापी हड़ताल की धमकी दी किन्तु कानून तो अपना काम करेगा ही। अन्तत: पूरी विवेचना के बाद पर्याप्त साक्ष्य पाये जाने पर बदमाशों एवं जेल के स्टाफ़ के विरुध्द चार्जशीट न्यायालय भेजी गई ।
उसके बाद उस जेल में जो जेलर आये वह बहुत कड़क थे। बहुत जल्द ही उन्होंने जेल की कार्यप्रणाली को सुधार दिया और अपराधियों को अहसास कराया कि जेल से किसी भी हालत में अपराध नहीं होने दिया जाएगा ।
वह बृध्द सचमुच बहुत खुश था कि उसने समाज की रक्षा के लिए एक मिसाल कायम की थी। ...
(अशोक कुमार)